वर्तमान काल में मनुष्य का जीवन इतना अधिक संघर्षमय हो गया है कि उसे अपने स्वास्थ्य की कम अपनी भौतिक-समृद्धि की चिन्ता अधिक है। स्वास्थ्य की देखभाल वह भागते-भागते करना चाहता है, अथवा अत्यधिक आरामतलब होने के कारण उसकी ओर से उदासीन हो जाता है। ऐलोपैथिक दवाओं का अत्यधिक सेवन कुछ समय के लिए उसे अवश्य स्वस्थ होने का एहसास करा देता है, किन्तु स्थायी स्वास्थ्य उसे कभी प्राप्त नहीं हो पाता। इसलिए जीवन की दौड़ में वह जल्दी थककर या तो बैठ जाता है या फिर दौड़ से ही बाहर हो जाता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति थोड़ी श्रम साध्य अवश्य है, किंतु शरीर को निरोग रखने और स्थायी स्वास्थ्य प्रदान करने में इस चिकित्सा पद्धति का कोई जोड़ नहीं है।
प्रकृति ने असंख्य रोग यदि उत्पन्न किए तो उनका निदान करने हेतु जड़ी-बूटियों को भी जन्म दिया। कोई ऐसा रोग नहीं है जिसका उपचार इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से न किया जा सके। इस प्रकार प्रकृति यदि विनाश का कारण बनी है तो वह मानव जीवन की सशक्त रक्षक भी है।
No comments:
Post a Comment