Thursday 24 September 2015

मिलेगी मुहांसों से मुक्ति

आप यदि मुहांसों से परेशान हैं तो अब आप बेफिक्र हो जाइए। क्योंकि कुछ घरेलू नुस्कों से इनसे निजात पाई जा सकती है। आप जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन तीनों का पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। रोज सोने से पहले दो-तीन चुटकी पावडर हथेली पर लेकर उसमें इतना पानी मिलाएं कि उबटन जैसा बन जाए। इसे खूब मिलाएं और फिर उसे चेहरे पर लगा लें और सो जाएं, सुबह उठकर सादे पानी से चेहरा धो लें। पंद्रह यह दिन तक यह काम करें। इसी के साथ प्रतिदिन ढाई सौ ग्राम मूली खाएं ताकि रक्त शुद्ध हो जाए और अन्दर से त्वचा को स्वस्थ पोषण मिले। कुछ हफ्तों में ही मुहांसे खत्म हो जाएंगे और त्वचा निखर जाएगी।  

अमरबेल के औषधीय प्रयोग (The Medicinal use of Mistletoe)


औषधीय गुणों से भरपूर अमरबेल


आपने भी अमरबेल को किसी न किसी बड़े पेड़ पर फैले हुए जरूर देखा होगा। हालांकि लोग इसे खरपतवार समझकर निकाल फेंकते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही इसके औषध्ाीय गुणों से वाकिफ होंगे। अमरबेल फालतू नहीं बड़े काम की होती है। आइए, हम आज आपको इसके औषध्ाीय गुणों से परिचित कराते हैं-

अमरबेल का परिचय:-

अमरबेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निर्भर) लता है, जिसे प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष पर फैलती है, अपना आहार उसके रस चूसने वाले सूत्र के माध्यम से प्राप्त कर लेती है। अमरबेल का रंग पीला और पत्ते बहुत ही बारीक तथा नहीं के बराबर होते हैं। अमरबेल पर सर्द ऋतु में कर्णफूल की तरह गुच्छों में सफेद फूल लगते हैं। इसके बीज राई के समान हल्के पीले रंग के होते हैं। अमरबेल बसंत ऋतु (जनवरी-फरवरी) और ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में बहुत बढ़ती है और शीतकाल में सूख जाती है। जिस पेड़ का यह सहारा लेती है, उसे सुखाने में भी यह कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती।

 अमरबेल गर्म एवं रुखी प्रकृति की होती है। इस लता के सभी भागों का उपयोग औषध्ाि के रूप में किया जाता है।
 
  • अमरबेल का प्रयोग खुजली दूर करने, त्वचा के बाहरी प्रयोग, आंखों के रोगों को नाश करने तथा पित्त, कफ और आमवात के नाश करने के लिए किया जाता है। इसे वीर्य बढ़ाने वाले रसायन और बलकारक के रूप में जाना जाता है। 

  • अमरबेल को पीसकर बनाए गए लेप को शरीर के खुजली वाले अंगों पर लगाने से आराम मिलता है। अमरबेल और मुनक्के को समान मात्रा में लेकर पानी में उबालकर बनाए गए काढ़े को छानकर 3 चम्मच रोजाना सोते समय पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

  •  गंजेपन को दूर करने के लिए गंज वाले स्थान पर अमरबेल को पानी में घिसकर तैयार किया लेप नियमित रूप से दिन में दो बार चार से पांच हफ्ते तक लगाने से लाभ मिलता है।

  • लगभग 50 ग्राम अमरबेल को कूटकर एक लीटर पानी में पकाकर बालों को ध्ाोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं, बालों का झड़ना और रूसी में भी इससे लाभ होता है। इसका लेप सिर में लगाने से जुएं भी मर जाती हैं।

  • अमरबेल के बीजों को पानी में पीसकर बनाए गए लेप को पेट पर लगाकर कपड़े से बांध्ाने से गैस की तकलीफ, डकारें आना, अपान वायु (गैस) न निकलना, पेट दर्द एवं मरोड़ जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं।

  •  अमरबेल का बफारा (भाप) देने से गठिया वात की
  • पीड़ा और सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है। बफारा देने के पश्चात इस पानी से स्नान कर लें तथा मोटे कपड़े से शरीर को खूब पोंछ लें।

  • अमरबेल के बफारे से अंडकोश की सूजन भी हट जाती है।

  •  ऐसी प्राचीन मान्यता है कि अमरबेल को सूती ध्ाागों में बांध्ाकर बच्चों के कंठ (गले) व भुजा (बाजू) में बांध्ाने से कई बाल रोग दूर होते हैं।

  • अमरबेल पीले ध्ाागे की तरह से भिन्ना व हरे रंग की भी पाई जाती है, जिसे पीसकर मक्खन तथा सोंठ के साथ मिलाकर लगाने से चोट के घाव भी जल्दी ठीक हो जाते हैं। 


अमरबेल से जुडे आदिवासी हर्बल नुस्खे

जंगलों, सड़क, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड़ पर यह लग जाती है, वह पेड़ धीरे धीरे सूखने लगता है। इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधीय गुण भी है। अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। आदिवासी अंचलों में अमरबेल को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर उपयोग में लाया जाता है, चलिए जानते हैं आज अमरबेल से जुडे हर्बल नुस्खों और आदिवासी जानकारियों को..


  • पूरे पौधे का काढ़ा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता है। आदिवासियों के अनुसार यह काढा घावों पर लगाया जाए तो यह घाव को पकने नहीं देता है।

  • बरसात में पैर के उंगलियों के बीच सूक्ष्मजीवी संक्रमण या घाव होने पर अमरबेल पौधे का रस दिन में 5-6 बार लगाया जाए तो आराम मिल जाता है।

  • अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। यह मिश्रण एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है।

  • गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध देते है। इनके अनुसार यह दर्द निवारक की तरह कार्य करता है।

  • गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यदि आम के पेड़ पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो बाल पुन: उगने लगते है।

  • डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।
  • डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में 20 मिनट तक उबालते हैं और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार यह तेल बालों के झडने का सिलसिला कम करता है और गंजे सिर पर भी बाल लाने में मदद करता है।

  • पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार मुँह और पेट के कैंसर या ट्युमर में इस पौधे का काढा आराम दिलाता है, आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।

अदरक का औषधि उपयोग (Benefits of Ginger)


अदरक रूखा, तीखा, उष्ण-तीक्ष्ण होने के कारण कफ तथा वात का नाश करता है, पित्त को बढ़ाता है। इसका अधिक सेवन रक्त की पुष्टि करता है। यह उत्तम आमपाचक है। भारतवासियों को यह सात्म्य होने के कारण भोजन में रूचि बढ़ाने के लिए इसका सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। आम से उत्पन्न होने वाले अजीर्ण, अफरा, शूल, उलटी आदि में तथा कफजन्य सर्दी-खाँसी में अदरक बहुत उपयोगी है।
सावधानीः रक्तपित्त, उच्च रक्तचाप, अल्सर, रक्तस्राव व कोढ़ में अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए। अदरक साक्षात अग्निरूप है। इसलिए इसे कभी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए ऐसा करने से इसका अग्नितत्त्व नष्ट हो जाता है।

औषधि-प्रयोगः


उलटीः(Vomiting) अदरक व प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 चम्मच लेने से अथवा अदरक के रस में मिश्री में मिलाकर पीने से उलटी होना व जौ मिचलाना बन्द होता है।

हृदयरोगः(Heart Disease) अदरक के रस व पानी समभाग मिलाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

मंदाग्निः(Indigestion) अदरक के रस में नींबू व सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है।

उदरशूलः(colic) 5 ग्राम अदरक, 5 ग्राम पुदीने के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक डालक पीने से उदरशूल मिटता है।

शीतज्वरः(Malaria) अदरक व पुदीने का काढ़ा देने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। शीतज्वर में लाभप्रद है।

पेट की गैसः(Intestinal Gas) आधा-चम्मच अदरक के रस में हींग और काला नमक मिलाकर खाने से गैस की तकलीफ दूर होती है।

सर्दी-खाँसीः(Cold-Cough) 20 ग्राम अदरक का रस 2 चम्मच शहद के साथ सुबह शाम लें। वात-कफ प्रकृतिवाले के लिए अदरक व पुदीना विशेष लाभदायक है।
खाँसी एवं श्वास के रोगः अदरक और तुलसी के रस में शहद मिलाकर लें।

केले के लाभ (Benefits of Banana)


वैसे तो केला बारह ही महीने बाजार में उपलब्ध रहता है। लेकिन बरसात के सीजन में ये शरीर के लिए विशेष लाभदायक होता है। कच्चा केला मीठा, ठण्डी तासीर का, भारी, स्निग्ध, कफकारक, पित्त, रक्त विकार, जलन, घाव व वायु को नष्ट करता है। पका हुआ केला स्वादिष्ट, शीतल, मधुर, वीर्यवर्ध्दक, पौष्टिक, मांस की वृध्दि करने वाला, रुचिकारक तथा भूख, प्यास, नेत्ररोग और प्रमेह का नाश करने वाला होता है।
  •  यदि महिलाओं को रक्त प्रवाह अधिक होता है तो पके केले को दूध में मसल कर कुछ दिनों तक खाने से लाभ होता है।

  •  बार-बार पेशाब आने की समस्या हो तो चार तोला केले के रस में दो तोला घी मिलाकर पीने से फायदा होता है।

  •  यदि शरीर का कोई हिस्सा जल जाए तो केले के गूदे को मसल कर जले हुए स्थान पर बांधे। इससे जलन दूर होकर आराम पहुंचता है।

  •  पेचिश रोग में थोड़े से दही में केला मिलाकर सेवन करने से फायदा होता है।

  •  संग्रहणी रोग होने पर पके केले के साथ इमली तथा नमक मिलाकर सेवन करें।

  •  दाद होने पर केले के गूदे को नींबू के रस में पीसकर पेस्ट बनाकर लगाएं।

  •  पेट में जलन होने पर दही में चीनी और पका केला मिलाकर खाएं। इससे पेट संबंधी अन्य रोग भी दूर होते हैं।

  •  अल्सर के रोगियों के लिये कच्चे केले का सेवन रामबाण औषधि है।

  • केला खून में वृध्दि करके शरीर की ताकत को बढ़ाने में सहायक है। यदि प्रतिदिन केला खाकर दूध पिया जाए तो कुछ ही दिनों में व्यक्ति तंदुरुस्त हो जाता है।

  •  यदि चोट लग जाने पर खून का बहना न रुके तो उस जगह पर केले के डंठल का रस लगाने से लाभ होता है।

  •  केला छोटे बच्चों के लिये उत्तम व पौष्टिक आहार है। इसे मसल कर या दूध में फेंटकर खिलाने से लाभ मिलता है।

  • केले और दूध की खीर खाने या प्रातः सायं दो केले घी के साथ खाने या दो केले भोजन के साथ घंटे बाद खाकर ऊपर से एक कप दूध में दो चम्मच शहद धोलकर लगातार कुछ दिन पीने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है।

  • केले का शर्बत बनाकर पीने से सूखी खांसी, पुरानी खांसी और दमे के कारण चलने वाली खांसी में 2-2 चम्मच सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

  • एक पका केला एक चम्मच घी के साथ 4-5 बूंद शहद मिलाकर सुबह-शाम आठ दिन तक रोजाना खाने से प्रदर और धातु रोग में लाभ होता है।

  • पके केले को घी के साथ खाने से पित्त रोग शीघ्र शान्त होता है।

  •  मुंह में छाले हो जाने पर गाय के दूध के दही के साथ केला खाने से लाभ होता है।

  • एक पका केला मीठे दूध के साथ आठ दिन तक तक लगातार खाने से नकसीर में लाभ होता है।

  •  दो केले एक तोला शहद में मिलाकर खाने से सीने के दर्द में लाभ होता है।

  •  दो पके केले खाकर, एक पाव गर्म दूध एक माह तक सेवन करने से दुबलापन दूर होकर शरीर स्वस्थ बनता है।

  • प्रतिदिन भोजन के बाद एक केला खाने से मांसपेशियां मजबूत बनती है व ताकत देता है।

  • प्रातः तीन केले खाकर, दूध में शक्कर व इलायची मिलाकर नित्य पीते रहने से रक्त की कमी दूर होती है।

  •  यदि बाल गिरते हों तो केले के गूदे में नींबू का रस मिलाकर सिर में लगाने से बाल झड़ना रूक जाता है।

  •  जलने या चोट लगने पर केले का छिलका लगाने से लाभ होता है।

  •  पके हुए केले को आंवले रस तथा शक्कर मिलाकर खाने बार-बार पेशाब आने की शिकायत होती है।

  •  बच्चे को दस्त लग जाने पर पके केले को कटोरी में रख कर चम्मच से घोट कर मक्खन जैसा बना लें और जरा सी मिश्री पीस कर मिला कर बच्चे को दिन में दो तीन बार खिलाएं। लाभ होगा, कमजोरी नहीं आएगी और बच्चे के शरीर में पानी की कमी नहीं हो पाएगी। ध्यान रहे कि केला जितनी बार खिलाना हो, उसे उसी समय बनाएं। ढक कर रखा गया या काट कर रखा केला न खिलाएं। वह हानिकारक हो सकता है। मिट्टी खाने के आदी बच्चों को इसका गूदा खूब फेंट कर जरा सा शहद मिला कर आधा आधा चम्मच खिलाना उपयोगी है। पर ध्यान रहे की शाम के बाद केला ना दे ।

  •  कोई भी चीज मात्रा से अधिक खाना पीना हानिकारक है। इसी तरह केला भी ज्यादा खाने से पेट पर भारी पड़ेगा, शरीर शिथिल होगा, आलस्य आएगा। कभी ज्यादा खा लिया जाए तो एक छोटी इलायची चबाना लाभकारी है।

  •  कफ प्रकृति वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। हमेशा पका केला ही खाएं।

  •  केले में मैग्नीशियम की काफी मात्रा होती है जिससे शरीर की धमनियों में खून पतला रहने के कारण खून का बहाव सही रहता है। इसके अलावा पूर्ण मात्रा में मैग्नीशियम लेने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है।

  •  कच्चे केले को दूध में मिलाकर लगाने से त्वचा निखर जाती है और चेहरे पर भी चमक आ जाती है।

  • रोज सुबह एक केला और एक गिलास दूध पीने से वजन कंट्रोल में रहता है और बार- बार भूख भी नहीं लगती।

  • गर्भावस्था में महिलाओं के लिए केला बहुत अच्छा होता है क्योंकि यह विटामिन से भरपूर होता है।

  • गले की सुजन में लाभकारी है।

  •  जी-मिचलाने पर तो पका केला कटोरी में फेंट कर एक चम्मच मिश्री या चीनी और एक छोटी इलायची पीस कर मिला कर खाने से राहत मिलेगी।

  •  केले के तने के सफेद भाग के रस का नियमित सेवन डायबिटीज की बीमारी को धीरे-धीरे खत्म कर देता है।

  •  खाना खाने के बाद केला खाने से भोजन आसानी से पच जाता है।

आस्थमा क्या होता है? आस्थमा किन चीजों से होता है? आस्थमा के क्या लक्षण होते हैं? आस्थमा अटैक से कैसे बचें ?



आस्थमा क्या होता है?

आस्थमा, दमा या हफनी को कहते हैं। इस बीमारी में सांस लेने में तकलीफ होता है। यह सांस के नली का एक स्थायी बीमारी है, जो कि आजीवन रहता है।

आस्थमा के क्या लक्षण होते हैं?

*.दमा या हफनी होना, खास करके सांस छोडते वख्त
*.खांसी होना
*.सांस लेने में तकलीफ़
*.छाती में कफ जमा हुआ लगना
*.छाती जकडा हुआ लगना
*.फेफड़ा में संक्रमित बीमारी होना, जिसे न्युमोनिया (pneumonia) कहते ह
अस्थमा के कारण
अस्थमा कई कारणों से हो सकता है। अनेक लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थ, दवाइयाँ इत्र, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से हो सकता हैं; कुछ लोग रुई के बारीक रेशे, आटे की धूल, कागज की धूल, कुछ फूलों के पराग, पशुओं के बाल, फफूँद और कॉकरोज जैसे कीड़े के प्रति एलर्जित होते हैं। जिन खाद्य पदार्थों से आमतौर पर एलर्जी होती है उनमें गेहूँ, आटा दूध, चॉकलेट, बींस की फलियाँ, आलू, सूअर और गाय का मांस इत्यादि शामिल हैं।
कुछ अन्य लोगों के शरीर का रसायन असामान्य होता है, जिसमें उनके शरीर के एंजाइम या फेफड़ों के भीतर मांसपेशियों की दोषपूर्ण प्रक्रिया शामिल होती है। अनेक बार अस्थमा एलर्जिक और गैर-एलर्जीवाली स्थितियों के मेल से भड़कता है, जिसमें भावनात्मक दबाव, वायु प्रदूषण, विभिन्न संक्रमण और आनुवंशिक कारण शामिल हैं। एक अनुमान के अनुसार, जब माता-पिता दोनों को अस्थमा या हे फीवर (Hay Fever) होता है तो ऐसे 75 से 100 प्रतिशत माता-पिता के बच्चों में भी एलर्जी की संभावनाएँ पाई जाती हैं।

आस्थमा किन चीजों से होता है?


*.जानवरों से (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें से)
*.पेड़ और घास के पराग कण*.धूलकण
*.सिगरेट का धुआं*.वायु प्रदूषण
*.ठंडी हवा या मौसमी बदलाव*.पेंट या रसोई की तीखी गंध
*.सुगंधित उत्पाद*.मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव
*.एस्पिरीन और अन्य दवाए
ं*.विशेष रसायन या धूल जैसे अवयव*.पारिवारिक इतिहास
*.तंबाकू के धुएं से भरे माहौल में रहनेवाले शिशुओं को अस्थमा होने का खतरा होता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा होने का खतरा होता है।
*.मोटापे से भी अस्थमा हो सकता है। अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

आस्थमा अटैक से कैसे बचें ?


*.शहद एक सबसे आम घरेलू उपचार है, जो कि अस्थमा के इलाज के लिये प्रयोग होती है। अस्थमा अटैक आने पर शहद वाले पानी से भाप लेने से जल्द राहत मिलती है। इसके अलावा दिन में तीन बार एक ग्लासपानी के साथ शहद मिला कर पीने से बीमारी से राहत मिलती है। शहद बलगम को ठीक करता है, जो अस्थमा की परेशानी पैदा करता है।

*.एक कप घिसी हुई मूली में एच चम्मच शहद और नींबू का रस मिला कर 20 मिनट तक पकाएं। इस मिश्रण को हर रोज एक चम्मच खाएं। यह इलाज बड़ा ही प्रसिद्ध और असरदार है।

*.करेला, जो कि अस्थमा का असरदार इलाज है, उसके एक चम्मच पेस्ट को लेकर शहद और तुलसी के पत्ते के रस के साथ मिला कर खाएं। इससे अंदर की एलर्जीसे बहुत राहत मिलती है।

*अंदर की एलर्जी को सही करने के लिये मेथी भी बहुत असरदार होती है। एक ग्लास पानी के साथ मेथी के कुछ दानों को तब तक उबालें, जब तक पानी एक तिहाई न हो जाए। अब उसी पानी में शहद और अदरक का रस मिला लें। इस रस को दिन में एक बार पीने से जरुर राहत मिलेगी।

*अस्थमा -क्या करें और क्या न करेंऐसा करें

*.धूल से बचें और धूल -कण अस्थमा से प्रभावित लोगों के लिए एक आम ट्रिगर है |

*.एयरटाइट गद्दे .बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते ह

*.पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं.इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा |*.अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें|

*.अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी |

*.बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ |

*.सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए |

*.एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है |

*.किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने हमसे संर्पक करें |ऐसा न करें

*.यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें |

*.पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें |

*.घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद करदें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडोंपर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है |

*.मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें |*.दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें |

*.अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें
|
*.अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं.इससे प्रॉब्लम और भीबढ जाएगी. ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली हैजिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है |

आस्थमा क्या होता है? आस्थमा किन चीजों से होता है? आस्थमा के क्या लक्षण होते हैं? आस्थमा अटैक से कैसे बचें ?





आस्थमा क्या होता है?

आस्थमा, दमा या हफनी को कहते हैं। इस बीमारी में सांस लेने में तकलीफ होता है। यह सांस के नली का एक स्थायी बीमारी है, जो कि आजीवन रहता है।

आस्थमा में क्या होता है?

इस बीमारी में, सांस लेने के नली में तीन चीज़ होता है, जिससे कि सांस लेने में तकलीफ होता है।
  • संवेदनशील होना - सांस लेते समय, अनके तरह के कण, बाहरी वातावरण से फेफड़े के अंदर पहुंच जाते हैं। सामान्य स्थिती में शरीर, इन कण को खांसी के बलगम के द्वारा बाहर निकाल देता है। आस्थमा के मरीज में, इन कण के विरुद्ध, अत्याधिक और गाढ़ा बलगम बनने लगता है। इन कण को एलर्जन (allergen) कहते हैं, क्योंकि उनसे आस्थमा के मरीज़ को एलर्जी (allergy) होता है।
  • सूजन और जलन होना – इसे इनफ्लेमेशन कहते हैं। आस्थमा के मरीज में, इस दौरान सांस के नली भी सूज जाते हैं।
  • संकरा होना - सांस के नली के चारो तरफ मांस पेशी होते हैं। सामान्य स्थिती में मांस पेशी ढीले पड़े रहते हैं, लेकिन आस्थमा का अटैक होने पर वो सांस के नली के चारो ओर से कस देते हैं। इससे सांस के नली संकरा हो जाते हैं। बाद में समय के साथ या दवा लेने पर, मांस पेशी फिर ढीले पड़ जाते हैं।

आस्थमा किन चीजों से होता है? |Asthma - Trigger factors | 


आस्थमा (दमा, हफनी) का बीमारी हमेशा के लिए होता है| यह कभी खत्म नहीं होता है, किंतु अपना ध्यान रखने से आप अपने या अपने सगे संबन्धी के आस्थमा को नियंत्रण में रख सकते हैं| घर और बाहर में अनेक चीज होती हैं जिनके कारण आस्थमा चालू हो सकता है| ये कारक नीचे दिए गए हैं|

1  हवा में प्रदूषण सबसे मुख्य कारण है

  • जैसे की गाड़ियों से निकलता धुआं
  • धुम्रपान करते हुए व्यक्ति के साथ रहना | इसीलिए घर में कोई भी धूम्रपान करे, असर सब पर पड़ता है|
  • वसंत ऋतू में जब नए फूल निकलते हैं, तो उसके पौलन या फूलों के पराग से अस्थमा हो सकता है|
  • गर्दा से
  • सेंट, परफ्यूम, डियोडोरेंट, जेल, क्रीम, लोशन, स्प्रे, साबुन इत्यादी के गंध से
  • तेल युक्त पेंट से (Paint)

2  बाहर के वातावरण में बदलाव से

  • ठंडा हवा में सांस लेना

3  गहरा सांस लेने से, जैसे की

  • व्यायाम से या बच्चे को खेलने से भी अस्थमा हो सकता है| जिस बच्चे को आस्थमा के कारण खेलने में दिक्कत होता है, उसे खेल से आधा घंटा पहले दवा लेना चाहिए| ध्यान रहे की रोजाना व्यायाम या खेलने से आस्थ्मा कम हो सकता है|

4  मन के भावना से

  • आपके मन के भावना का आस्थमा पर बहुत असर होता है। किसी भी आवेश या उत्तेजना से, दमा के मरीज में, आस्थमा अटैक हो सकता है। जैसे कि अधिक हँसने से, रोने से, गुस्सा से या अन्य किसी भावना से अधिक तेज से सांस लेने से, आस्थमा हो सकता है।

5  घर के अन्दर प्रदूषण से

  • घर में भींगा होने पर दीवारों पर मोल्ड (Molds) या फंगस लग जाने पर
  • घर में पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली) के बाल, थूक और पेशाब से, ख़ास करके अगर कोई बच्चा उस जानवर से बहुत खेलता है
  • तिलचट्टा के खाल से (Cockroach), छोटे कीटाणु से (House Dust Mite)
  • खाने में कोई पदार्थ से जैसे की पैकेट में रखे खाने के साथ अन्य मिलावट जो की उस खाने को ख़राब होने से बचाता है
  • खाना से एलरजी से जैसे की दूध, अंडा, श्रिम्प मछली, मूंगफली
  • कोई दवा से, जैसे की सिरदर्द का दवा इबुप्रोफेन (Ibuprofen) या अस्पिरिन (Aspirin), संक्रमित बीमार के लिए पेनीसिल्लिन (Penicillin), दिल के रोग के लिए बीटा ब्लोकर (Beta Blocker)

6  बीमारी से

  • कोई नाक, कान, गला या सांस के नली के बीमारी से
  • खट्टा ढकार आने पर, पेट से आधा-पचा हुआ खाना गर्दन तक आ सकता है, और फेफड़ा में जा सकता है। यह भी आस्थमा का कारण हो सकता है। इसको गस्ट्रो-इसोफेजियल रिफल्क्स (Gastro-esophageal reflux disorder or GERD) कहते हैं।

7  होर्मोंस के बदलाव से

  • होर्मोंस के बदलाव से लड़की में आस्थमा हो सकता है, जैसे की मासिक धर्म के समय या गर्भ के दौरान|


आस्थमा के क्या लक्षण होते हैं?


आस्थमा के अनेक लक्षण होते हैं। इसमें से मरीज़ को कोई भी लक्षण हो सकता है। कुछ लक्षण जो कि बहुत लोगों में पाया जा सकता है, वो हैं -
  • दमा या हफनी होना, खास करके सांस छोडते वख्त
  • खांसी होना
  • सांस लेने में तकलीफ़
  • छाती में कफ जमा हुआ लगना
  • छाती जकडा हुआ लगना
  • फेफड़ा में संक्रमित बीमारी होना, जिसे न्युमोनिया (pneumonia) कहते हैं

3.  अपने बच्चे को डाक्टर के पास कब ले जाना चाहिये?

अगर आपके बच्चे को कभी भी नीचे लिखे हुये बातों में से कुछ भी हो रहा है, तो अपने डाक्टर के पास जरूर ले जायें।
  • अगर उसको सांस लेने में तकलीफ है
  • खांसी जो बहुत दिनों से है, और छूट नहीं रहा है
  • जब भी आपका बच्चा खेलता है तो उसको खांसी या दमा होता है
  • छाती पर बहुत अधिक बोझ लगता है
  • सांस छोडते समय आवाज़ या सीटी निकलता है

4.  अपने बच्चे को अस्पताल कब जाना चाहिये?

अगर आपके बच्चे को कभी भी नीचे लिखे हुये बातों में से कुछ भी हो रहा है, तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिये-
  • अगर उसको सांस लेने में बहुत तकलीफ है या सांस रुक रहा है
  • उसको बोलने में तकलीफ है
  • उसको सांस लेने के लिये नाक, गले, छाती और पेट के अन्य मांस-पेशियों का इस्तेमाल लेना हो।
  • वो मुरछित अवस्था में है या होनेवाला है
ध्यान रहे कि आस्थमा का अटैक बहुत मिनटों में किसी मरीज को गम्भीर रूप से बीमार कर सकता है। इलाज न मिलने पर, दमा का भयानक अटैक जानलेवा भी हो सकता है।

5.  आस्थमा के लक्षण से कैसा समझा जाता है कि कितना गम्भीर स्थिती है?

आस्थमा के लक्षण से आस्थ्मा को अनेक वर्ग में विभाजित किया जाता है। सभी को एक ही तरह का दमा नहीं होता है, और एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय में विभिन्न प्रकार के दमा के लक्षण देखने को मिल सकता है। फिर भी, डाक्टर जब आप से शुरू में कुछ सवाल पूछते हैं, तो उससे आपका आस्थमा को वर्गीकरण करने में मद्द मिलता है। कुछ वर्ग नीचे दिया गया है -
  • कम समय से आस्थ्मा है, जैसे कुछ दिन, हफ्ते या महीने
  • बहुत समय से आस्थ्मा है, बहुत महीने या सालों से है
  • बोलने में तकलीफ है, और आप एक-एक शब्द रुक-रुक कर बोल रहे हैं, तो अत्यंत गम्भीर आस्थ्मा है
  • बोलने में तकलीफ है, और आप एक-एक वाक्य रुक-रुक कर बोल रहे हैं, तो मध्यम गम्भीर आस्थ्मा है
  • बोलने में तकलीफ है, और आप सामन्य तरीके से बोल रहे हैं, तो हल्का आस्थ्मा है
  • सांस के तकलीफ से, हर हफ्ते आप दो-तीन रात ठीक से सो नहीं पाते हैं, तो अत्यंत गम्भीर आस्थ्मा है
  • सांस के तकलीफ से, हर महीने आप दो-तीन रात ठीक से सो नहीं पाते हैं, तो मध्यम गम्भीर आस्थ्मा है
इसके अलावा डाक्टर आपसे पूछ सकते हैं, कि आप उस समय क्या कर रहे थे, जिससे कि आपको आस्थमा हुआ। इससे किसी कारण का पता चल सकता है।

आस्थमा और व्यायाम (Asthma and exercise )


1.  क्या आस्थमा में सामान्य तरह से व्यायाम कर सकते हैं?

अस्थमा होने का यह मतलब नहीं है कि आप पर कोई प्रतिबंध लगा है। आप सामान्य तरह से व्यायाम कर सकते हैं। बच्चे, सामान्य रूप से खेल-कूद सकते हैं। इससे आपका शरीर तंदरुस्त रहेगा। लेकिन, आपको पहले कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा, जिसका जिक्र नीचे दिया गया है।

2.  कब सामान्य रूप से व्यायाम कर सकते हैं?

अगर आपका आस्थमा नियंत्रित है, तो आप सामान्य रूप से व्यायाम कर सकते हैं।
अगर व्यायाम के दौरान, अगर आपको कोई भी निम्नलिखित परेशानी हो, तो आपका आस्थमा नियंत्रण में नहीं है। उदाहरण के लिये – सांस लेने में और खास करके छोड़ने में तकलीफ होना, सांस लेते समय और छोड़ते समय सीटी बजना, जिसे व्हीज़ींग (wheezing) कहते हैं, खांसी, गाढ़ा बलगम, छाती पर भारीपन और छाती कसा होना।

3.  व्यायाम या खेल-कूद के समय क्या ध्यान रखना चाहिये?

  • कभी अकेले में कोई भी व्यायाम न करें
  • व्यायाम करने के 10 मिनट पहले अपना दवा लें
  • व्यायाम को धीरे-धीरे बढ़ायें, अर्थात पहले हल्का-फुल्का चलें या अन्य हल्का कसरत करें
  • हमेशा अपना दवा साथ में रखें, जिससे आपको तुरंत राहत पहुंचता है
  • आस्थमा के अन्य कारणों से अपना बचाव करें। उदाहरण के लिये – ठंडा हवा, फूल से पराग, धूल, बुरादा, प्रदुषण, धुंआ और अन्य
  • अंत में व्यायाम को धीरे-धीरे घटायें, अर्थात हल्का-फुल्का चलें या अन्य हल्का कसरत करें


 मिटरड डोज़ इनहेलर (Metered dose inhaler)


1.  मिटरड डोज़ इनहेलर क्या होता है?

मिटरड डोज़ इनहेलर, फेफड़ा में दवा लेने के लिये, एक तरह का यंत्र होता है। इसमें एक दवा का डिब्बा (Canister) को प्लास्टिक के खोल (plastic case) में रखा होता है, और एक माउथपीस (mouth-piece) होता है। यह माउथपीस को मुंह से लगाया जाता है। इस दवा का सबसे अधिक लाभ यह है कि अधिक से अधिक दवा, फेफड़ा तक पहुंच सकता है और बांकि शरीर पर दवा से कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता है

3.  आस्थमा दवा का मिटरड डोज़ इनहेलर कैसे लें?

मिटरड डोज़ इनहेलर (Metered Dose Inhaler), फेफड़ा में दवा देने का एक तरीका है। इसको एम डी आई (MDI) भी कहते हैं। यह एक बहुचर्चित तरीका है, जो डाक्टर अपने आस्थमा के मरीज़ को देते हैं। इस दवा का सबसे अधिक लाभ यह है कि अधिक से अधिक दवा, फेफड़ा तक पहुंच सकता है और बांकि शरीर पर दवा से कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता है। लेकिन इस दवा को लेने में एक रुकावट है, और वह है कि इस दवा को सही तरह से लेना आना चाहिये, अन्यथा सारा दवा मुंह में ही रह जाता है, और बहुत कम दवा फेफड़ा तक पहुंचता है। यहां हम इस दवा को सही तरह से लेने के विधी पर बात करेंगे।
मिटरड डोज़ इनहेलर (Metered Dose Inhaler) को सही तरह से लेने का विधी नीचे दिया गया है -
  • दवा पर से ढक्कन (plastic cap) हटायें|
  • दवा के डिब्बे को सही तरह से पकड़ें, जिससे कि दवा का माउथपीस मरीज़ के मुंह के 1 इंच या दो उंगली आगे हो।
  • मरीज का सिर हल्के तरीके से उठा होना चाहिये, और मुंह खुला होना चहिये।
  • दवा को कुछ समय तक हिलायें; इससे दवा अच्छे तरह से मिल जाते हैं।
  • एक बार गहरा सांस लेकर, आराम से सांस छोड़ें
  • दवा को मुंह से लगायें, और अपने होंठ से उसे जकड़ लें
  • सांस लेना चालू करें, और साथ ही दवा के डिब्बा (Canister) को नीचे के तरफ दबायें
  • सांस पूरे तरह से लें, और फिर कम से कम 10 सेकंड तक सांस रोक कर रखें, जिससे कि दवा के कण आपके फेफड़ा तक पहुंच कर अच्छे से फैल सकें।
  • फिर आहिस्ते से सांस बाहर छोड़ें
  • सामान्य रूप से सांस लेना चालू करें
  • अगर जरूरत हो उपर दिये गये क्रम को फिर से दोहरायें
  • बाद में एक बार कुल्ला कर लें, जिससे कि मुंह में कोई दवा न रहे
  • अगर ठीक तरह से दवा लिया गया है, तो तुरंत फेफड़ा तक आपको अच्छा महसूस होगा और सांस लेने में आसानी मिलेगा। अगर कोई फर्क नहीं पड़ा तो फिर से ध्यान दें कि क्या आप सही तरह से दवा ले रहे हैं कि नहीं?
  • डाक्टर के अनुसार बताये गये दवा को ही, निश्चित समय पर, एक या दो बार लेना चाहिये। यह कभी न करें कि जब जी चाहे, एक बार दवा ले लिया। अगर आपको बताये गये नुस्खे से अधिक बार दवा लेने का जरूरत पड रहा है तो फिर से अपने डाक्टर से परामर्श लें।
  • हफ्ता में एक बार दवा के प्लास्टिक डिब्बा (plastic case) और उसके ढक्कन (plastic cap) को पानी से धोना चाहिये।

4.  एक मिटरड डोज़ इनहेलर कितना दिन चलता है?

किसी मिटरड डोज़ इनहेलर को आप कितने बार इस्तेमाल करते हैं, इस पर निर्भर करता है कि वो दवा का डिब्बा आपको कितने दिन तक चलेगा। उदाहरण के लिये, अगर आप कोई दवा लेते हैं, जिसपर लिखा हुआ है कि वो डिब्बा में 200 बार दवा देने का क्षमता है, और आप उस दवा को दिन में 2 बार सुबह और 2 बार संध्या में रोज़ाना लेते हैं, तो यह डिब्बा आपको 200/4 = 50 दिन चलेगा। आप यह बात अपने डिब्बा के उपर और डायरी में लिख लें कि यह दवा का डिब्बा कब शूरु किया गया और अंदाज़ से किस तिथी को यह दवा का डिब्बा खत्म होगा। साथ ही यह देख कर रखें कि कहीं यह दवा काफ़ी पुराना तो नहीं है, या एक्सपायर्ड (expired) तो नहीं है। तो अगर आपका दवा खत्म होनेवाला है या फिर पुराना है, तो नया दवा बाज़ार से ले आयें।
जिन लोग को आस्थमा है, उन्हें अपने पास हमेशा अपना डिब्बा रखना चाहिये, चाहे घर पर, स्कूल में, दफ्तर में, किसी वाहन में या सफर पर। जरूरत पड़ने पर यह दवा मरीज़ के लिये अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

5.  ये इन्हेलर को किन दवाओं को लेने के लिये इस्तेमाल किया जाता है?

इन्हेलर से अनेक प्रकार के दवा को फेफड़ा में पहुंचाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। जैसे कि
  • विभिन्न प्रकार के आस्थमा के दवा
  • धूम्रपान के आदत को छुड़ाने के लिये निकोटीन(nicotine) दवा के लिये




कोलेस्ट्रोल को कम करने के कुछ घरेलू उपचार(Some Home Remedies to Reduce Cholesterol)


कोलेस्ट्रोल को कम करने के कुछ घरेलू उपचार
.कच्ची लहसुन रोज सुबह खाली पेट खाने से कोलेस्ट्रोलकम होता है।*.रोज 50 ग्राम कच्चा ग्वारपाठा (धृतकुमारी या ग्वारपाठे या एलो वेरा)खाली पेट खाने से खून में कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है
.रात के समय धनिया के दो चम्मच एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रात: हिलाकर पानी पी लें। धनिया भी चबाकर निगल जाएं।

टमाटर के लाभ (The Benefits of Tomatoes)



||टमाटर के लाभ||
टमाटर चेहरे के लिए प्राकृतिक ब्लीच होता है। टमाटर के टुकड़े को चेहरे पर रगड़कर कुछ समय के लिए छोड़ दें। इससे आपकी त्वचा तरोताजा रहेगी और ब्लैकहैड्स भी दूर होंगे।

Hair GrowthTips




अरंडी तेल से मसाज
अरंडी तेल (Castor Oil) में विटामिन ई के साथ बालों की ग्रोथ के लिए जरुरी औमेगा फैटी-9 एसिड रहता है। इस तेल से बालों के स्कैल्प की मसाज करने से बाल कुदरती तरीके से लंबे और घने होते हैं। वैसे अरंडी का तेल काफी गाढ़ा होता है, अगर इसके साथ बराबर मात्रा में नारियल तेल, जैतून का तेल और बादाम का तेल मिला लिया जाए तो यह और असरदार हो जाताहै। सभी तेलों को मिलाकर 5 मिनट तक बालों के स्कैल्प की मसाज करें। चालीस मिनट बाद माइल्ड शैम्पू से बालों को धो लें। ऐसा नियमित करने से जल्द ही बालों की लंबाई में असर दिखने लगेगा।

Wednesday 23 September 2015

बूढ़े भी दौड़ने लगे ऐसे हैं ‘ज्वाइंट पेन’ के ये देसी नुस्खे.

 बूढ़े भी दौड़ने लगे ऐसे हैं ‘ज्वाइंट पेन’ के ये देसी नुस्खे.
1. लगभग 8-10 लहसुन की कली को तेल या घी में तल लें और खाना खाने सेपहले उसे चबाएं। इससे जोड़ों के दर्द से तुरंत आराम मिलता है।
-डांग जिला गुजरात के हर्बल जानकारों का मानना है कि लहसुन की कलियों को तलकर या गर्म करके कपूर के साथ मिलाकर दर्द वाली जगह पर थोड़ी देर तक मालिश की जाए तो तुरंत आराम मिलता है।

2. साटोडी के फूल,आबा हल्दी और अदरक की समान मात्रा को मिक्स कर उसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े की दो-तीन चम्मच मात्रा का सेवन करें। इससे भी जोड़ों का दर्द दूर होता है।

3. आंकडा के ताजी पत्तियों पर सरसों का तेल के साथ लेप तैयार कर लें। इस लेप को हल्का गर्म कर दर्द वाली जगह पर लगाने से भी आराम मिलता है.

4. दालचीनी का 2 ग्राम का चूर्ण एक कप पानी में मिलाकर रोजाना सुबह पिएं। इससे जोड़ों के दर्द में काफी आराम मिलता है। डांग जिले के आदिवासियों के अनुसार यह फॉमरूला डायबिटीज की समस्या से भी निजात दिलाने में सहायक है। आदिवासियों के अनुसार खाने-पीने में भी दालचीनी का उपयोग शरीर को कई तरह की समस्याओं से दूर रखता है।

5. बरसात के दिनों में इंद्रावन के फल का गूदा, नमक और आजवाइन के मिश्रण का सेवन न सिर्फ जोड़ों के दर्द से मुक्ति दिलाता है, बल्कि यह आर्थरायटिस में भी शरीर को काफी लाभ पहुंचाता है।

6. आदिवासी आमतौर पर अनंतवेल के पत्तों की चाय पीते हैं। अनंतबेल की एक ग्राम जड़ लगभग एक कप चाय के लिए काफी है। अगर दिन में दो बार इसका सेवन किया जाए तो जोड़ों के दर्द से तुरंत निजात मिल जाती है।

7. आदिवासी हरी घास, अदरक, दालचीनी और लोंग की समान मात्रा को मिश्रित कर इसकी गोली बनाते हैं। वे इस गोली का नियमित सेवन करते हैं और इसके साथ कम से कम 5 मिली पानी पीने की सलाह देते हैं। यह प्रकिया अगर लगातार एक महीने तक आजमाई जाए तो जोड़ों का दर्द खत्म हो जाता है।

8. पारिजात के 6-7 ताजे पत्ते अदरक के साथ पीस लें और शहद का साथ इसका सेवन करें तो इससे न केवल जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है, बल्कि शरीर की अन्य तकलीफें भी खत्म हो जाती हैं। माना जाता है कि इस फॉमरूले का सेवन सायटिका जैसे रोगों से निजात दिलाने में भी बहुत सहायक है।