हमारे संस्कार में अपना विशेष महत्व रखने वाली यह घास भगवान श्री गणेश की सर्वाधिक प्रिय औषधीय गुणों से युक्त दुब या दुबा घास जमीन में फैलती है और ऊँचाई 2 से 8 सेमी0 होती है। इसमें फैलने की अद्भुत क्षमता होती है इसलिये हमारे वहाँ आशीष स्वरूप कहा भी जाता है ‘दुब जस परणि हो जाय’।
आज हमारे संस्कारों में चित्त में बसी इस घास की उत्पत्ति इसके आयुर्वेदिक महत्व व इसके महत्वपूर्ण रासायनिक घटकों से आपका परिचय कराते हैं। वैसे तो हम इससे अच्छी तरह परिचित हैं। बचपन में जब भी दूध के दाँत टूटे तो इसकी जड़ में दबाये। गणेश जी की पूजा हो या दूब जोड़ की पूजा या फिर संकट की पूजा दूब हमसे जुड़ा रहा। दूब भारत में सभी जगह पाई जाने वाली औषधीय गुणों से युक्त घास है।
दूब घास में कई रासायनिक घटक पाये जाते हैं। जिसके कारण इसका औषधीय महत्व बढ़ जाता है। इसमें प्रोटीन, एंजाइम, राख, कैल्शियम, मैगनीज, फास्फोरस, सोडियम, पोटेशियम पाया जाता है।
दूब घास औषधीय गुणों से युक्त होने के कारण महत्वपूर्ण तो है ही, धर्म के साथ हमारे पूर्वजों ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। दूब घास की उत्पत्ति को लेकर हमारी पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि समुद्र मंथन के समय देवता और राक्षस लगे हुए थे। कुछ समय बीत जाने के बाद देवता और राक्षस थक गये तो भगवान विष्णु मंदरांचल पर्वत को अपनी जंघा पर रख मंथन करने लगे। जिससे उत्पन्न हुए घर्षण से शरीर से रोम समुद्र में गिरने लगे और किनारे आकर दूब के रूप में जम गये।
समुद्र मंथन के उपरान्त जब अमृत निकला तो उसे इस दूब में रखा गया। इसी कारण अमृत के प्रभाव से यह दूब भी अमृत तुल्य हो गया। दूब घास एक ऐसी घास है। जो किसी भी परिस्थिति में जब अन्य घासें नष्ट होने लगती हैं तब भी अपना विकास करने में सक्षम है। एक बार उगने पर यह आसानी से नष्ट नहीं होती है।
दूब घास को पशुओं के लिए भी सम्पूर्ण पोषण माना गया है। महाराणा प्रताप ने भी इसी को खाकर पोषण प्राप्त किया था।
इस घास के औषधीय गुण भी कम नहीं हैं। दूब घास वात व कफ रोगों में लाभदायक होती है। यह घावों को भरने के लिए लाभदायक होता है। यह मस्तिष्क को पोषण दे उसके काम करने के तरीके को बेहतर बनाती है। नकसीर में इसका रस नाक में डालने पर लाभ होता है। ऐनिमिया में इसका प्रयोग लाभदायक होता है। दूब पाचन को ठीक करने में सहायक होती है। रक्त की शुðि करती है, और भी कई रोगों में यह प्रयुक्त होती है जैसे कब्ज, मनोवृत्ति, पाइल्स, मासिक धर्म में गड़बड़ी, हेमरेज, ऐपिथेसिस, अपच, मिथली, उपदंश आदि कई प्रकार के रोगों में ये रामबाण औषधि है। इसको पेस्ट, पाउडर व रस तीनों रूपों में इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें वर्ष में दो बार फूल आते हैं। सितम्बर-अक्टूबर व फरवरी-मार्च में। इसे लाॅन में लगाया जा सकता है। इसे देखभाल की भी अधिक आवश्यकता नहीं होती है। यह विघन हरण, रोग हरण, अमूल्य वरदान है।
ऐसा माना जाता है कि सुबह-शाम घास पर चलना सेहत के लिए अच्छा होता है, खासकर हमारी आंखों के लिए। लेकिन क्या आपने जानते हैं क्यों। चलिए हम बताते हैं आपको वो फायदे जो केवल हरी घास पर चलने से आपके दिमाग और शरीर को प्राप्त होते हैं।
हरी घास आपके शरीर को ऐसे हार्मोन्स बनाने के लिए प्रेरित करता है जिनसे आपको शांति मिले।
रिफ्लेक्सोलॉजी- हमारे पैर रिफ्लेक्सोलॉजी का मुख्य केंद्र हैं जो शरीर के विभिन्न हिस्सों से जुड़े हुए हैं। रिफ्लेक्सोलॉजी के नियमों के मुताबिक पैर में मौजूद प्रेशर पॉइंट्स को आराम पहुंचने से शरीर के बाकी हिस्सों को भी फायदा होता है। आंख, चेहरे की नसें, प्लीहा, पेट, दिमाग, किडनी जैसे विभिन्न अंगों के लिए पॉइंट हमारे पैरों में मौजूद होते हैं। हरी घास पर चलने से इन पॉइंट्स पर दबाव पड़ता है और हमारा शरीर की कार्यक्षमता बढ़ती है। doctor kehte हैं कि जब हम घास पर चलते है तो पैर से जुड़ी हुई नसों पर हल्के से दबाव बनता है और हमारे पूरे शरीर को आराम मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब हम चलते हैं तो अंगूठे, पहली और दूसरी उंगली पर सबसे अधिक प्रेशर पड़ता है और रिफ्लेक्सोलॉजी में आंखों के पॉइंट दूसरी और तीसरी उंगली पर बताए जाते हैं।
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