Tuesday 27 October 2015

अर्टिकेरिया (Urticaria) या शीतपित्त का घरेलू उपचार

शीतपित्त या अर्टिकेरिया (Urticaria)-जिसमें सारे शरीर में स्थान-स्थान पर लाल सुर्ख चकत्ते उत्पन्न होकर  खुजली उत्पन्न करते हैं और खुजलाने से या रगड़ने से और अधिक खुजली उठती है। यह एक प्रकार का एलर्जिक रोग है-जिसमें हिस्टामीन नामक एक टाक्सिस त्वचा में प्रवेश कर खुजली के साथ चकत्ते पैदा कर इसकी उत्पत्ति करता है-


इसे साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं-इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है-कभी- कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है-

शीतपित्त पेट की गड़बड़ी तथा खून में गरमी बढ़ जाने के कारण होता है-वैसे साधारणतया यह रोग पाचन
क्रिया की खराबी, शरीर को ठंड के बाद गरमी लगने, पित्त न निकलने, अजीर्ण, कब्ज, भोजन ठीक से न पचने, गैस और डकारें बनने तथा एलोपैथी की दवाएं अधिक मात्रा में सेवन करने से भी हो जाता है-कई बार अधिक क्रोध, चिन्ता, भय, बर्रै या मधुमक्खी के डंक मारने, जरायु रोग (स्त्रियों को), खटमल या किसी जहरीले कीड़े के
काटने से भी इसकी उत्पत्ति हो जाती है-

पित्त बढ़ जाने के कारण हाथ, पैर, पेट, गरदन, मुंह, जांघ आदि पर लाल-लाल चकत्ते या ददोरे पड़ जाते हैं| उस स्थान का मांस उभर आता है- जलन और खुजली होती है- कान, होंठ तथा माथे पर सूजन आ जाती है- कभी-कभी बुखार की भी शिकायत हो जाती है-


अर्टिकेरिया (Urticaria) या शीतपित्त का घरेलू उपचार:

  • सबसे पहले रात को दो से चार चम्मच एक एरण्ड का तेल दूध में पीकर सुबह दस्तों के द्वारा पेट साफ कर लें- फिर छोटी इलायची के दाने 5 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम और पीपल 10 ग्राम - सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और इसमें से आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सुबह मक्खन या शहद के साथ चाटें-

  • पित्ती वाले रोगी के शरीर में गेरू पीसकर मलें तथा गेरू के परांठे या पुए खिलाएं| गाय के घी में दो चुटकी गेरू मिलाकर खिलाने से भी लाभ होता है

  • गेरु, हल्दी, दारु हल्दी, मजीठ, बावची, हरड़, बहेड़ा, आँ वला सब 10-10 ग्राम लेकर कूट-पीसकर मिला लें व शीशी में भर लें। रात को 10 ग्राम चूर्ण एक गिलास पानी में भिगो दें और सुबह पानी नितार कर इसमें दो चम्मच शहद घोलकर पी लें। पानी निथारने के बाद गिलास में बचा गीला चूर्ण लेकर चकत्तों व ददोड़ों पर लेप करे- इस लेप से कष्ट शीघ्र मिट जाता है-

  • हल्दी 300 ग्राम, शुद्ध घी 250 ग्राम, दूध 5 लीटर, शकर 2 किलो, सौंठ, पीपल, काली मिर्च, तेजपान, छोटी इलायची, दालचीनी, नाग केशर, नागरमोथा, वायविडंग, निशोथ, हरड़, बहेड़ा, आँवला और लौह भस्म सब 40-40 ग्राम-अब हल्दी पीस कर दूध में डालकर आग पर रख उबालें और मावा बना लें, मावा घी में भून लें। शक्कर की चासनी बनाकर इसमें मावा और सभी द्रव्यों का कुटा-पिसा चूर्ण डालकर अच्छी तरह हिलाकर मिला लें, फिर थाली में जमने के लिए रख दें, जमने पर बरफी काट लें- 5 या 6 ग्राम वजन में इसे सुबह-शाम खाने से शीत पित्त, एलर्जी, त्वचा के विकार, ऐलोपैथिक दवा का रिएक्शन आदि सब व्याधि इस हरिद्रा खण्ड के सेवन से नष्ट हो जाती हैं। यह इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है।

  • आधा चम्मच गिलोय के चूर्ण में आधा चम्मच चंदन का बुरादा मिलाकर शहद के साथ सेवन करें-

  • पानी में पिसी हुई फिटकिरी मिलाकर स्नान करें- नागर बेल के पत्तों के रस में फिटकिरी मिलाकर शरीर
  • पर लगाएं-

  • थोड़े से मेथी के दाने, एक चम्मच हल्दी तथा चार-पांच पिसी हुई कालीमिर्च - सबको मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें- सुबह आधा चम्मच चूर्ण शहद या दूध के साथ सेवन करें-

परहेज (Avoiding) :-


  • साग-सब्जी, मौसमी फल तथा रेशेदार सब्जियों का सेवन करें तथा गरम पदार्थ, गरम मेवे, गरम फल तथा गरम मसालों का प्रयोग न करें-

  • साग- सब्जी तथा दालों में नाममात्र नमक डालें-

  • खटाई, तेल, घी आदि का प्रयोग कम करें-

  • पित्त को कुपित करने वाली चीजें, जैसे-सिगरेट, शराब तथा कब्ज पैदा करने वाले गरिष्ठ पदार्थ बिलकुल न खाएं-

  • पुराने चावल, जौ, मूंग की दाल, चना आदि लाभकारी हैं-

प्याज, लहसुन, अंडा, मांस, मछली आदि शीतपित्त में नुकसान पहुंचाते हैं, अत: इनका भी सेवन न करें- जाड़ों में गुनगुना तथा गरमियों में ताजे जल का प्रयोग करें-

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